सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक फैसले में कहा कि ब्रेकअप या शादी का वादा तोड़ना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं हो सकता. हालांकि, ऐसे वादे टूटने पर शख्स इमोशनली डिस्टर्ब हो सकता है. इमोशनली डिस्टर्ब होकर अगर वह सुसाइड कर लेता है, तो इसके लिए किसी दूसरे को दोषी नहीं माना जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने ये कहते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के एक फैसले को बदल दिया. कर्नाटक हाईकोर्ट ने आरोपी कमरुद्दीन दस्तगीर सनदी को अपनी गर्लफ्रेंड से चीटिंग और सुसाइड के लिए उकसाने का दोषी करार दिया था.
8 साल का रिश्ता टूटा, लड़की ने की खुदकुशी
मां की ओर से दर्ज FIR के मुताबिक, उसकी 21 साल की बेटी 8 साल से आरोपी से प्यार करती थी. अगस्त 2007 में उसने आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि आरोपी ने शादी का वादा पूरा करने से मना कर दिया था.
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आरोपी कमरुद्दीन दस्तगीर सनदी पर शुरू में IPC की धारा 417 (धोखाधड़ी), 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 376 (बलात्कार) के तहत आरोप लगाए गए थे. हाईकोर्ट ने आरोपी को 5 साल की जेल और 25 हजार जुर्माना भरने की सजा सुनाई थी. आरोपी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने लिखा 17 पन्नों का फैसला
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच की ओर से जस्टिस मिथल ने 17 पेज का फैसला लिखा. बेंच ने महिला की मौत से पहले के दो बयानों का एनालिसिस किया. इसमें कहा गया कि न तो कपल के बीच फिजिकल रिलेशन का कोई आरोप था. न ही आत्महत्या के लिए कोई जानबूझकर किया गया काम था.
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इसलिए फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि टूटे हुए रिश्ते भावनात्मक रूप से परेशान करने वाले होते हैं, लेकिन इन्हें क्रिमिनल केस की कैटेगरी में शामिल नहीं किया जा सकता.
लंबे रिश्ते के बाद भी ब्रेकअप करना सुसाइड के लिए उकसाना नहीं
फैसले में कहा गया है कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह दर्शा सके कि आरोपी ने महिला को आत्महत्या के लिए उकसाया. अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि लंबे रिश्ते के बाद भी शादी से इनकार करना उकसावे की कैटेगरी में नहीं आता.
अदालत ने कहा, "निश्चित रूप से, जब तक आरोपी का आपराधिक इरादा स्थापित नहीं हो जाता, तब तक उसे IPC की धारा 306 के तहत दोषी ठहराना संभव नहीं है."
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