बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) को आरक्षण विवाद को लेकर जार प्रदर्शन के कारण सोमवार को पद छोड़ना पड़ा. लंबे समय से देश में छात्र आंदोलन जारी था. इस आंदोलन में अब तक 106 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. भारी जन दबाव के कारण शेख हसीना को पद और देश दोनों छोड़ना पड़ा. सेना ने सत्ता को अपने कब्जे में ले लिया है और अंतरिम सरकार का जल्द ही देश में गठन किया जाएगा. शेख हसीना के पीएम आवास पर भी प्रदर्शनकारियों ने कब्जा कर लिया.
लगातार चल रहे विरोध प्रदर्शन के बीच बांग्लादेश में सेना प्रमुख ने शेख हसीना से पद छोड़ने के लिए सोमवार को कहा. सेना प्रमुख वकार-उज-जमां ने कहा कि हम अंतरिम सरकार के जरिए देश को चलाएंगे. हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि बांग्लादेश में एक बार फिर सैनिक शासन की शुरुआत हो गयी है. ऐसे में सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिर वो कौन से 4 कारण रहे जिसके कारण लगातार 4 बार से प्रधानमंत्री बन रही शेख हसीना को पद छोड़ना पड़ा.
आरक्षण की आग ने युवाओं को बनाया बागी
बांग्लादेश में शेख हसीना के विरुद्ध हुए इस आंदोलन के केंद्र में जो बात सबसे प्रमुख रही वो है. आरक्षण के खिलाप युवाओं का आक्रोश. व्यवस्था के तहत स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के लिए सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण का प्रावधान था. इसके विरोध में हो रहे आंदोलन को कुचड़ने के लिए शेख हसीना की सरकार ने दमन का सहारा लिया. इस हिंसा में देश भर में 300 से अधिक लोगों की मौत हो गयी. बात-बात पर लोगों पर गोली चलायी गयी. 11 हजार से अधिक लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया और इन उत्पात के बीच बांग्लादेश को करीब 10 मीलियन डॉलर का नुकसान हुआ.
विपक्षी दलों को पाकिस्तान से मिल रही है मदद
सेना का शेख हसीना के खिलाफ होना
देश में जारी लगातार प्रदर्शन और हिंसा के कारण देश में आम लोगों की भावनाएं सरकार के खिलाफ जाने लगी थी. इसका फायदा देश की विपक्षी दलों के साथ-साथ सेना ने भी उठाया. सेना ने भी शेख हसीना सरकार को साथ देने से इनकार कर दिया और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार कर दिया. देश में हुए चुनाव पर भी कई सवाल खड़े हुए थे. जिसका असर भी देखने को मिला.
बांग्लादेश की खराब आर्थिक स्थिति
आंदोलनकारियों को रजाकार कहने पर भड़के प्रदर्शनकारी
इस मुद्दे पर एनडीटीवी से बात करते हुए प्रोफेसर संजय भारद्वाज ने कहा कि इस घटना की पृष्ठभूमि साल 2018 से ही तैयार हो रही थी. इसके पीछे कई कारण रहे हैं. कोटा के मुद्दे पर 2024 में एक बार फिर आंदोलन की शुरुआत हो गयी. बाद में कोर्ट ने इसके ऊपर फैसला सुनाया. कोर्ट के फैसले को सरकार ने सही से हैंडल नहीं किया. छात्रों के आंदोलन को सरकार ने दबाने का प्रयास किया. बार-बार हुई अव्यवस्था के कारण यह आंदोलन इस हद तक आगे पहुंच गया और हिंसक बन गया. सरकार की असफलता के कारण यह एक राजनीतिक संकट के तौर पर सामने आ गया. सरकार की तरफ से आंदोलनकारियों को रजाकार और आतंकी कहने पर भी आंदोलन और तीव्र हो गया.
लोकतंत्र की रक्षा के लिए विश्व समुदाय आया सामने
ब्रिटेन ने सोमवार को बांग्लादेश में लोकतंत्र बहाल करने के लिए ‘‘त्वरित कार्रवाई'' का आह्वान किया. दूसरी तरफ, नेपाल ने बांग्लादेश के नागरिकों की संभावित घुसपैठ की आशंका के चलते भारत से लगती अपनी सीमा पर सुरक्षा बढ़ा दी है. ब्रिटेन की यह प्रतिक्रिया ऐसे समय में आई है, जब बांग्लादेश की नेता शेख हसीना प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर अचानक भारत पहुंचीं और उनके ब्रिटेन से शरण मांगने की खबरें सामने आईं है. ढाका में, बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमां ने कहा कि हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है और एक अंतरिम सरकार कार्यभार संभालने जा रही है. पिछले दो दिनों में, हसीना सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में 100 से अधिक लोग मारे गए हैं. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री केअर स्टार्मर के प्रवक्ता ने ‘10 डाउनिंग स्ट्रीट' में संवाददाताओं से कहा कि वह (स्टार्मर) हाल के हफ्तों में बांग्लादेश में हुई हिंसा से बहुत दुखी हैं.
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