रजा फाउंडेशन, स्त्री दर्पण और ड्रीम फाउंडेशन द्वारा रामेश्वरी नेहरू स्मृति समारोह का आयोजन किया गया. इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि करीब 115 साल पहले स्त्री दर्पण पत्रिका निकालकर स्त्री आंदोलन शुरू करने वाली संपादक रामेश्वरी नेहरू ने हरिजनों और विभाजन के समय दंगा पीड़ितों की भी सेवा की. दस दिसम्बर 1886 को लाहौर में जन्मी रामेश्वरी नेहरू की याद में पहली बार किसी साहित्य समारोह का आयोजन किया गया.
समारोह के दौरान वरिष्ठ कवि विमल कुमार के कविता संग्रह तवायफनामा का विमोचन किया गया. तवायफनामा में भूली बिसरी 33 गायिकाओं और तवायफों पर कविताएं हैं. समारोह की अध्यक्षता ममता कालिया की. उन्होंने मशहूर गायिका जानकी बाई छप्पन छुरी का जिक्र करते हुए कहा कि तब पुरुष स्त्री की प्रतिभा से जलते भूनते बहुत थे. यही कारण है कि जानकी बाई पर चाकू से 56 वार किए गए. उन्होंने बताया कि हुस्ना जान ने किस तरह महात्मा गांधी के साथ बनारस में आजादी की अलख जगाने का काम किया.
मुस्लिम महिलाओं के बिना स्त्री विमर्श अधूरा : शर्मा
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका नासिरा शर्मा ने कहा कि 1857 के विद्रोह के बाद औरतों की विशेषकर मुस्लिम महिलाओं के लिए आजीविका का संकट पैदा हो गया और महिलाएं कोठे पर नाच गाकर अपना हुनर बेचने लगी और तवायफ कहलाने लगी, जबकि वे उस अर्थ में तवायफ नहीं थी जिस अर्थ में लोग समझते हैं.
उन्होंने कहा कि हमें औरतों के इतिहास की बात करते हुए स्त्री विमर्श की बात करते हुए मुस्लिम महिलाओं को छोड़ नहीं देना चाहिए. बिना उनके हिंदुस्तान में स्त्री विमर्श अधूरा है. उन्होंने बताया कि उस जमाने में मुस्लिम महिलाएं क्या-क्या लिख रहीं थीं.
मीनाक्षी प्रसाद ने संग्रह के नाम पर जताई आपत्ति
बनारस घराने की प्रसिद्ध ठुमरी गायिका मीनाक्षी प्रसाद ने इस संग्रह के नाम पर आपत्ति जताई और कहा कि आखिर हम लोग कब तक एक कलाकार स्त्री को तवायफ गायिका कहकर पुकारेंगे, यह भाषा बदलनी चाहिए. हमारी भाषा पितृसत्ता से संचालित है. उन्होंने कहा कि महिलाओं में भी पितृसत्तात्मक मानसिकता काम करती है, उसे भी बदले जाने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि पुरुषों ने स्त्रियों की प्रतिभा को कमतर आंकने के लिए उस जमाने की भूली बिसरी गायिकाओं को तवायफ गायिकाएं कहकर पुकारना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि उन दिनों कोठे पर पुरुष कलाकार और महिला कलाकार साथ गाते बजाते और सीखते थे, लेकिन महिलाओं-गायिकाओं को बाई या जान कहकर पुकारा गया, जबकि उन्हें सम्मानजनक भाषा में पुकारा जाना चाहिए था.
उन्होंने कहा कि वे महिलाएं विदुषी थीं, लिखती-पढ़ती थीं, उम्दा गायिकाएं थीं. उन्होंने हिंदुस्तानी मौसिकी को बचाया, लेकिन पुरुष कलाकारों को उस्ताद या पंडित कहा गया जबकि महिला कलाकारों को बाई या जान या तवायफ गायिकाएं.
उन्हें इतिहास में जगह नहीं मिला : लता सिंह
जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर लता सिंह ने कहा कि इन तवायफ महिलाओं और कलाकारों ने राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन उन्हें इतिहास में जगह नहीं मिली.
कथा कार प्रभात रंजन ने कहा कि उनके शहर में ढेला बाई ही नहीं बल्कि पन्ना बाई जैसी गायिकाएं भी थीं जो आज़ादी के बाद यूनेस्को द्वारा सूचीबद्ध गायिकाओं में शीर्ष पर थीं. उन्होंने कहा कि इतिहास में उत्खनन का काम कर उन्हें दर्ज किया जाना चाहिए.
समारोह में इब्बार रब्बी ने पुरुष कवियों की स्त्री विषयक कविताओं की पुस्तक 'कविता में स्त्री' का लोकार्पण करते हुए कहा कि हिंदी कविता में पुरुषों ने स्त्रियों पर बहुत कविताएं लिखीं, लेकिन समाज में महिलाएं बलात्कार की शिकार हो रही हैं.
वहीं समारोह में रीता दास राम द्वारा संपादित पुस्तक हमारी अम्मा और अलका तिवारी द्वारा संपादित गीतांजलि श्री आलोचना के दायरे में पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया.
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