हिन्दू धर्म से इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों को SC/ST का दर्जा दिए जाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जुलाई में इस बात पर विचार करेगा कि क्या सरकार द्वारा स्वीकार ना की जाने वाली कमीशन की रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता है ? अगर हां तो किस हद तक. साथ ही प्रकृति और चरित्र को देखते हुए जाति व्यवस्था को इस्लाम या ईसाई धर्म में शामिल किया किया जा सकता है या नहीं? अदालत इस मुद्दे पर 11 जुलाई को अगली सुनवाई करेगी.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर कितने कमीशन बनेंगे? एक के बाद एक कमीशन का क्या औचित्य है? ये भी नहीं पता कि वर्तमान कमीशन की रिपोर्ट भी पहले जैसी नहीं होगी? दो दशक बीत चुके हैं. प्रत्येक व्यवस्था का अपना विचार और संदर्भ की शर्तें होंगी. सवाल यह है कि क्या राष्ट्रपति के आदेश में विशेष समुदायों को शामिल करने के लिए रिट जारी की जा सकती है.
याचिकाकर्ता की तरफ से प्रशांत भूषण ने रखा पक्ष
अदालत ने कहा कि रंगनाथ मिश्रा पैनल की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया है तो सवाल यह है कि इस पर कहां तक भरोसा किया जा सकता है? अनुभवजन्य डेटा की खोज की स्थिति क्या है ? इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह एक संवैधानिक सवाल है कि क्या राज्य धर्म के आधार पर भेदभाव कर सकता है? सरकार अब कह रही हैं कि उन्होंने दो साल के कार्यकाल के साथ एक नया आयोग नियुक्त किया है. लेकिन क्या अदालत को सरकार के इस बयान पर बार-बार इंतजार करना चाहिए? उन्होंने कहा कि हम शामिल करने के लिए नहीं कह रहे हैं, बल्कि दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों के बहिष्कार को असंवैधानिक, अवैध और मनमाना कह रहे है? गौरतलब है कि अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्य के रूप में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण का संवैधानिक अधिकार केवल हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के लोगों को दिया गया है.
कब दाखिल की गई थी याचिका?
याचिका 2004 में दाखिल की गई थी. अदालत ने कहा कि 19 साल हो गए हैं. जस्टिस संजय किशन कौल ने एएसजी केएम नटराज से पूछा कि संविधान मे जो बातें कही गई है उसी के मुताबिक इस मुद्दे को निर्धारित कर सकते हैं यहां यही मुद्दा है . सवाल यह है कि जिस संवैधानिक मुद्दे पर याचिकाकर्ता बात कर रहे हैं. क्या अदालत को कमीशन की रिपोर्ट तक इंतजार करना चाहिए?
केंद्र सरकार ने क्या कहा?
केंद्र की ओर से ASG के एम नटराज ने कहा कि नया कमीशन नियुक्त किया गया है. वह अपना काम कर रहा है.कोर्ट को कमीशन की रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए.रंगनाथ मिश्रा आयोग ने सभी पहलुओं पर गौर नहीं किया था. इस्लाम और क्रिश्चियनिटी अपनाने वालों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि इन धर्मों में जातीय आधार पर भेदभाव नहीं है.ईसाई या इस्लाम समाज में छुआछूत की दमनकारी व्यवस्था प्रचलित नहीं थी.ईसाई या इस्लामी समाज के सदस्यों को कभी भी इस तरह के पिछड़ेपन या उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा है. सिखों, बौद्ध धर्म में धर्मांतरण की प्रकृति ईसाई धर्म में धर्मांतरण से भिन्न रही है. दूसरे धर्म में परिवर्तन करने पर व्यक्ति अपनी जाति खो देता है.कोर्ट राष्ट्रपति के आदेश में बदलाव का निर्देश नहीं दे सकता.
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