Thursday, January 26, 2023

मध्यप्रदेश : पराली से बनायी जाएगी हाइब्रिड वुड,प्लाईवुड की तुलना में होगा सस्ता और मजबूत

हर साल देश के कई हिस्सों में और खासकर दिल्ली और आसपास सर्दी आते ही पराली जलाए जाने के कारण प्रदूषण का कहर देखा जाता है. पराली जलाने के कारण दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. पराली का धुआं दिल्ली ही नहीं, इसके आसपास के कई किलोमीटर के इलाके को ढ़क लेता है लेकिन मध्यप्रदेश में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद ने इसका हल ढूंढ निकाला है, भोपाल में हुए अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव में इसे प्रदर्षित भी किया गया. देश के खेतों में लगभग 150 मिलियन टन एग्रो वेस्ट निकलता है, जिसमें पराली का हिस्सा लगभग 55 मिलियन है, हर साल इसके धुएं से दिल्ली और उसके आसपास के इलाके के फेफड़े फूलते हैं, लेकिन भोपाल में CSIR के एडवांस्ड मैटेरियल्स एंड प्रोसेस रिसर्च इंस्टीट्यूट (AMPRI) के शोधकर्ताओं ने पराली को हाइब्रिड वुड में बदलने की तकनीक इजाद की है जो पारंपरिक प्लाईवुड की तुलना में 30% सस्ता और 20% मजबूत है.

CSIR-AMPRI के चीफ साइंटिस्ट अशोकन पप्पू ने कहा इसको बनाने के लिये पॉलिमर और पराली चाहिये, हम लोग पंजाब हरियाणा में इंडस्ट्री कलस्टर बनाने का सोच रहे हैं ये अलग-अलग थिकनेस में बन सकता है इससे लिमिटेड बोर्ड भी बन सकता है, हम उच्च गुणवत्ता और चमकदार फिनिश वाले कंपोजिट का उत्पादन करते हैं जो एक पॉलीमेरिक सिस्टम में 60% पराली का उपयोग करती है. ये पार्टिकल बोर्ड और प्लाईबोर्ड की तुलना में कहीं बेहतर है.हमने पराली को रिसाइकिल करने के लिए पंजाब और हरियाणा के कई स्टेक होल्डर्स से बातचीत की, हमने भारत और अमेरिका में पेटेंट के लिए भी आवेदन किया है.

2010 में सीएसआईआर के वैज्ञानिक सिंगरौली और आस-पास के इलाके में थर्मल पावर प्लांट से आनेवाले फ्लाई ऐश के प्रदूषण के लिये काम कर रहे थे, उसी दौरान इस तकनीक का इजाद हुआ, अब इसका प्रयोग पराली पर हो रहा है. CSIR-AMPRI के निदेशक प्रोफेसर अवनीश कुमार श्रीवास्तव ने कहा यहां हम कंपोजिट पर काम करते हैं इस तरह से कि ये पैनल, प्लॉयवुड का रिप्लसमेंट बने, सारी प्रक्रिया कमरे के तापमान पर पूरी की जाती है, यानी इसमें ज्यादा ऊर्जा की ज़रूरत नहीं है.

इसका बीआईएस मानदंडों के अनुसार परीक्षण किया गया है, पराली से तैयार लकड़ी से दरवाजे, फाल्स सीलिंग, वास्तुशिल्प दीवार पैनल, विभाजन और फर्नीचर बन सकता है. इससे रोजगार भी पैदा होगा और किसानों की आय में बढ़ोतरी भी. भोपाल में आयोजित 8वें अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव में ये तकनीक लैब से बाहर आई है, उम्मीद है अगले 2 साल में ये बाज़ार में होगी.इस उत्पाद का प्रौद्योगिकी लाइसेंस छत्तीसगढ़ स्थित औद्योगिक इकाई को दिया गया है और उम्मीद है कि सीएसआईआर की इस तकनीक का उपयोग करके कई और उद्योग स्थापित किए जाएंगे.

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