असम का काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान बीते लंबे समय से गैंडों की हत्या कर उनके सींगों के अवैध व्यापार करने को लेकर जाना जाता रहा है. लेकिन बीते दो वर्षों में क्रैक कमांडो, हाई टेक उपरकरणों की मदद और स्नीफर डॉग्स की विशेष दल की वजह से काजीरंगा में गैंडों के हो रहे अवैध शिकार में ऐतिहासिक गिरावट आई है. बता दें कि काजीरंगा 2600 ऐसे प्राणियों का घर है, जो या तो विलुप्त होने की कगार पर हैं या फिर बेशकीमती हैं.
हालांकि, गैंडों के शिकार में आई ऐतिहासिक गिरावट के लिए हमें असम पुलिस और वन विभाग द्वारा बनाए गए स्पेशल टॉस्क फोर्स को भी विशेष क्रेडिट देना चाहिए. राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड या एनएसजी के समान प्रशिक्षित ये कमांडो, जिन्हें राज्य में आतंकवाद विरोधी अभियानों के विशेषज्ञ भी माना जाता है, पार्क के सीमांत क्षेत्रों को सुरक्षित करने और शिकारियों के लॉन्च पैड को भी बर्बाद करने में भी माहिर हैं. इन कमांडोज में काजीरंगा को सुरक्षित बनाने के लिए इतना जुनून है कि ये असम से भाग चुके शिकारियों को पकड़ने के लिए दूसरे राज्यों तक भी जाते हैं.
काजीरंगा स्पेशल टॉस्क फोर्स के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमने पिछले साल ही शिकारियों के नेटवर्क को तबाह किया था. सिर्फ पिछले साल ही हमने गैंडों की हत्या करने वाले 58 शिकारियों को गिरफ्तार किया है, जबकि हमने चार अन्य शिकारियों को निष्क्रिय करने में भी कामयाबी मिली. ये काम सिर्फ अकेले का नहीं है बल्कि ये हमने एक टॉस्क फोर्स के तौर पर किया है. टॉस्क फोर्स में हम ज्वाइंट ऑपरेशन और इंवेस्टिगेशन भी करते हैं.
टॉस्क फोर्स व अन्य कमांडोज की मेहनत अब रंग लाने लगी है. यही वजह है कि काजीरंगा में 2021 में जहां सिर्फ 2 गैंडे का ही शिकार किया सका, वहीं पिछले साल यानी 2022 हमने एक भी गैंडे का शिकार नहीं होने दिया. वर्ष 1977 के बाद यह पहला मौका है जब हमने काजीरंगा में किसी भी गैंडे का शिकार नहीं होने दिया हो. यह 2000 और 2021 के बीच छोटे आतंकवादी समूहों से मिले अत्याधुनिक हथियारों से लैस शिकारियों द्वारा लगभग 190 गैंडों की हत्याओं के विपरीत है.
लेकिन शिकारियों के खिलाफ हमारी लड़ाई जारी है, ऐसा इसलिए भी क्योंकि पूर्वी एशिया में गैंडे के सींग का अवैध व्यापार सबसे ज्यादा फायदा देना वाला साबित हो रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पूर्वी एशिया के अलग-अलग इलाकों में इन सिंगों के उपयोग से पारंपरिक दवाएं और आभूषण बनाए जाते हैं. काजीरंगा के बुरापहाड़ रेंज में कार्यरत वनपाल जुक्ति बोरा ने कहा कि पहले के समय, शिकारियों को पकड़ने के लिए पुलिस के साथ हमारा तालमेल आज की तरह अच्छा नहीं था. साथ ही साथ हमारे पास अत्याधुनिक हथियार और मैन पॉवर की भी खासी कमी थी. जिसका फायदा ही ये शिकारी उठाते थे. लेकिन आज के हालात बिल्कुल ही अलग हैं. अब, आधुनिक हथियारों के साथ-साथ हमारे पास एक विशेष राइनो सुरक्षा बल ,तकनीक और घातक कमांडो भी मौजूद हैं.
शिकारियों के खिलाफ चल रही लड़ाई में हमारे लिए तकनीक का इस्तेमाल गेम चेंजर साबित हुआ. शिकारियों के खिलाफ रणनीति के तौर हमने पूरे पार्क में इलेक्ट्रॉनिक आइज, थर्मल सेंसर, कैमरा ट्रैप और नाइट विजन कैमरे लगाए हुए हैं. ड्रोन सर्विलांस और सैटेलाइन फोन्स का इस्तेमाल भी फॉरेस्ट गार्ड्स के लिए काफी अहम साबित हुआ है. किसी भी तकनीकी सूचना पर तुरंत एक्शन में आने के लिए हमारे पास क्विक रिस्पांस टीम भी है. ये टीम किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए हमेशा ही स्टैंड बॉय पर रहती है. साथ ही साथ हमे प्रसिद्ध बेल्जियन मैलिनोइस डॉग्स वाली कैनाइन यूनिट से भी शिकारियों तक पहुंचने और उन्हें रोकने में बड़ी मदद मिली है.
द वर्ल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (WTI) भी काजीरंगा में शिकारियों के खिलाफ जागरुकता बढ़ाने और किसी भी गैर-कानूनी व्यापार को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए बीते कई दशकों से काम कर रही है. काजीरंगा में WTI के प्रोजेक्ट हेड डॉ. समसुल अली ने कहा कि WTI में हमने स्थानीय लोगों को इस मुद्दे से अवगत कराने की कोशिश की, लेकिन चुकि अवैध वन्यजीव बाजार और गैंडों के अवैध शिकार में बड़ी मात्रा में पैसा शामिल है लिहाजा स्थानीय लोगों से कुछ लोग भी इन शिकारियों के साथ हो गए. ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि उन्हें लगा कि ऐसा करने से उन्हें कम मेहनत में ही अच्छा खासा पैसा मिल सकता है.
आज, काजीरंगा गैंडों की दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का घर है. टास्क फोर्स के प्रयासों के लिए धन्यवाद. आज ये गैंडे अब सुरक्षित वातावरण में रहने और पार्क में स्थित हाथी घास के मैदानों, दलदली झीलों और घने जंगलों में पहले से कहीं अधिक सुरक्षित रूप से घूम सकते हैं.
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