Wednesday, December 27, 2023

उल्फा, केंद्र और असम सरकार के बीच शांति समझौते के आसार, परेश बरुआ गुट नहीं होगा समझौते का हिस्‍सा

यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (United Liberation Front of Asom) के वार्ता समर्थक धड़े, केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच 29 दिसंबर को त्रिपक्षीय समझौता हो सकता है, जिसका उद्देश्य पूर्वोत्तर राज्य में दीर्घकालिक शांति बहाल करना है. सूत्रों ने मंगलवार को यह जानकारी दी. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah), असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्‍वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) और उल्फा के वार्ता समर्थक गुट के एक दर्जन से अधिक शीर्ष नेता यहां शांति समझौते पर हस्ताक्षर के समय उपस्थित रहेंगे. वार्ता समर्थक गुट का नेतृत्व अरबिंद राजखोवा करते हैं. 

घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने कहा कि इस समझौते में असम से संबंधित काफी लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों का ध्यान रखा जाएगा, इसके अलावा यह मूल निवासियों को सांस्कृतिक सुरक्षा और भूमि अधिकार प्रदान करेगा. 

परेश बरुआ के नेतृत्व वाला यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (उल्फा) का कट्टरपंथी गुट इस समझौते का हिस्सा नहीं होगा क्योंकि वह सरकार के प्रस्तावों को लगातार अस्वीकार कर रहा है. 

सूत्रों ने कहा कि राजखोवा समूह के दो शीर्ष नेता - अनूप चेतिया और शशधर चौधरी - पिछले सप्ताह राष्ट्रीय राजधानी में थे और उन्होंने शांति समझौते को अंतिम रूप देने के लिए सरकारी वार्ताकारों के साथ बातचीत की. 

उल्‍फा गुट से ये अधिकारी कर रहे बातचीत 

सरकार की ओर से जो लोग उल्फा गुट से बात कर रहे हैं उनमें इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक तपन डेका और पूर्वोत्तर मामलों पर सरकार के सलाहकार एके मिश्रा शामिल हैं. 

परेश बरुआ गुट कर रहा है विरोध 

परेश बरुआ के नेतृत्व वाले गुट के कड़े विरोध के बावजूद, राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट ने 2011 में केंद्र सरकार के साथ बिना शर्त बातचीत शुरू की थी. राजखोवा के बारे में माना जाता है कि वह चीन-म्यांमार सीमा के पास एक जगह पर रहते हैं. 

1979 में हुआ था उल्‍फा का गठन 

उल्फा का गठन 1979 में 'संप्रभु असम' की मांग के साथ किया गया था. तब से यह संगठन विघटनकारी गतिविधियों में शामिल रहा है जिसके कारण केंद्र सरकार ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था. 

राजाखोवा गुट 2011 में शांति वार्ता में शामिल हुआ 

उल्फा, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच ‘सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस' (एसओओ) के समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद राजखोवा गुट तीन सितंबर, 2011 को सरकार के साथ शांति वार्ता में शामिल हुआ था. 

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