क्लाइमेट से जुड़े आपदाओं की संख्या दुनियाभर में बढ़ रही है. आपदाओं की वजह से आंतरिक विस्थापन झेल रहे लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. अंतराष्ट्रीय संस्था इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर ने अपनी ताज़ा ग्लोबल रिपोर्ट में कहा है कि 2022 के अंत तक प्राकृतिक आपदा की वजह से दुनिया में कुल 3.26 करोड़ लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए. इनमे करीब २5 लाख भारत में थे.
चक्रवाती तूफान मोका (Cyclone Mocha)जब म्यांमार के तटीय इलाकों से टकराया. हवा की रफ़्तार 209 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा थी. इसके असर से सैकड़ों घर तबाह हो गए. बिजली और मोबाइल टावर्स उखड़ गए. सबसे ज्यादा प्रभावित Sittwe Township में 20000 लोगों ने तटीय इलाकों में अपने घरों को छोड़कर मठों, पगोडा/ शिवालयों और स्कूलों में शरण लेनी पड़ी. बांग्लादेश में ऐहतियातन 12-लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया था.
आपदाओं का कहर दुनिया में बढ़ता जा रहा है. इसके साथ ही लोगों का आंतरिक विस्थापन भी. जेनेवा स्थित संस्था इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर यानी IDMC ने अपनी ग्लोबल रिपोर्ट में दावा किया है कि 2022 के अंत तक करीब 7.11 करोड़ लोग आंतरिक तौर पर विस्थापित हुए. इनमे पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा 3.26 करोड़ लोग आपदाओं की वजह से विस्थापित हुए. बाढ़ की वजह से सबसे ज्यादा लोग विस्थापित हुए.
भारत में आंतरिक विस्थापन का संकट झेल रहे लोगों की संख्या 25 लाख 7 हज़ार थी. दुनिया में सबसे ज्यादा आतंरिक विस्थापन का संकट झेल रहे देशों की लिस्ट में भारत चौथे नंबर पर रहा. भारतीय मौसम विभाग की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर सोम सेन रॉय कहती हैं- 'प्राकृतिक आपदाओं के साथ साथ आंतरिक विस्थापन की वजह तापमान और बारिश के पैटर्न में बदलाव भी होता जो स्थानीय लोगों की जीविका पर असर डालता है.'
डॉक्टर सोम सेन रॉय ने NDTV से कहा, 'क्लाइमेट चेंज की वजह से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है. निचले इलाकों से लोग शिफ्ट हो रहे हैं. जहां आपदाएं बढ़ रही हैं, वहां से लोग शिफ्ट हो रहे हैं. जिन इलाकों में बारिश कम हो रही है या बढ़ रही है, वहां से भी लोगों का विस्थापन बढ़ा है. ज़ाहिर है, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की चुनौती बड़ी हो रही है.
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