नई दिल्ली: सूत्रों ने ब्रिटिश मीडिया में आई इन खबरों का खंडन किया है कि भारत ने ब्रिटेन में संग्रहालयों से कोहिनूर हीरा और मूर्तियों सहित अन्य कलाकृतियों को वापस लाने के लिए राजनयिक संसाधन जुटाए हैं. सूत्रों ने कहा कि यह सच नहीं है कि ब्रिटेन से हजारों कलाकृतियों की वापसी सुनिश्चित करने के लिए मंत्रिस्तरीय और राजनयिक संसाधन जुटाए जा रहे हैं. रिपोर्ट में अधिकारी द्वारा कोहिनूर का कभी उल्लेख नहीं किया गया था.
सूत्रों के अनुसार द्विपक्षीय सहयोग और साझेदारी के माध्यम से पुरावशेषों की पुनर्प्राप्ति की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जो मौजूदा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं के अनुरूप है. यह प्रक्रिया अतीत में भी होती रही है और ऐसे कई देशों के साथ हुई है जहां भारतीय कलाकृतियां हैं. कोहिनूर पिछले हफ्ते के राज्याभिषेक के समय सुर्खियों में था.
महाराजा रणजीत सिंह के खजाने से ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में आने से पहले 105 कैरेट का हीरा भारत में शासकों के पास था और फिर पंजाब के विलय के बाद महारानी विक्टोरिया को भेंट किया गया था. डेली टेलीग्राफ अखबार ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि कोहिनूर को वापस लाने का मुद्दा भारत सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है.
प्रत्यावर्तन की दिशा में हाल के वर्षों में अन्य सांस्कृतिक रुझान रहे हैं, ग्रीस के साथ एल्गिन मार्बल्स और नाइजीरिया बेनिन ब्रॉन्ज की मांग कर रहे हैं. पिछले साल, ग्लासगो लाइफ - एक धर्मार्थ संगठन जो स्कॉटिश शहर के संग्रहालयों को चलाता है - ने भारत सरकार के साथ चोरी की गई सात कलाकृतियों को भारत वापस लाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.
इनमें से अधिकांश वस्तुओं को 19वीं शताब्दी के दौरान उत्तरी भारत के विभिन्न राज्यों में मंदिरों और धार्मिक स्थलों से हटा दिया गया था, जबकि एक को मालिक से चोरी के बाद खरीदा गया था. ग्लासगो लाइफ के अनुसार, सभी सात कलाकृतियों को ग्लासगो के संग्रह में उपहार में दिया गया था.
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